दुनिया के सबसे ऊँचे रेलवे ब्रिज पर ट्रैक बिछाने का काम शुरू, कश्मीर से कन्याकुमारी तक होगा रेल सफर

दोस्तों चिनाब दरिया के किनारे एक पहाड़ी पर बसे कौड़ी गांव के बाहरी छोर पर शनिवार को दुनिया के सबसे ऊंचे अर्धचंद्राकार (आर्च) पुल के दोनों मुहानों (बक्कल सलाल और डुग्गा) की तरफ से लोहे की मोटी-मोटी चादर और गार्डर धीरे-धीरे एक दूसरे की तरफ सरकने लगे।

इंजीनियर और श्रमिक ही नहीं, वहां मौजूद अन्य लोग पूरे उत्साह के साथ भारत माता की जय, वंदे मातरम और हाउ इज द जोश के नारे लगाने लगे। जब दोनों सिरे गोल्डन ज्वाइंट (स्वर्ण जोड़) मिले तो इसका नाम दुनिया के सबसे ऊंचे आर्च पुल में दर्ज हो गया। भारत की रेलवे इंजीनियङ्क्षरग के इतिहास में एक नया सुनहरी अध्याय जुड़ऩे के साथ कन्याकुमारी से कश्मीर तक रेल पहुंचाने की राह में एक बड़ी बाधा भी पार हो गई। जम्मू संभाग के रियासी जिले में बने इस आर्च पुल पर संभवत: इसी वर्ष के अंत तक इस पर पटरी भी बिछा दी जाएगी। खास बात यह है कि इस पुल से आगे जब रेल बढ़ेगी तो 2.74 डिग्री के कोण पर घुमाव लेते हुए बढ़ेगी। देश में पहली बार कर्व ट्रैक तकनीक का इस्तेमाल भी यहीं पर हुआ है।

चिनाब आर्च पुल निर्माण योजना में शामिल उत्तरी रेलवे के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर प्रतीक यादव के मुताबिक, इससे पहले दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल चीन में था, जिसकी ऊंचाई 310 मीटर है। हमारा पुल दरिया की सतह से 359 मीटर की ऊंचाई पर है। कर्व तकनीक में हमने जिस कोण पर यहां ट्रैक तैयार किया है, वह भी विश्व में कई देशों में पहली बार है। उन्होंने कहा कि यह आर्च पुल पेरिस के एफिल टावर से 35 मीटर ऊंचा है। रेलवे पुल जिन खंभों पर मजबूती से खड़ा है, उनकी ऊंचाई 131 मीटर है, जो कुतुबमीनार से कहीं ज्यादा है।

ऊधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेलवे लिंक, उत्तरी रेलवे के प्रशासकीय अधिकारी संजीव माही ने कहा कि आज हमने एक नए युग में प्रवेश किया है। यह आजादी के अमृत महोत्सव और स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर रेलवे का उपहार है। बीते साल 21 अप्रैल को हमने आर्च पुल पूरा किया था, आज इसका डेक तैयार हो गया है, जिस पर पटरी बिछेगी। आज गोल्डन ज्वाइंट (स्वर्ण जोड़) हुआ है। यह बहुत ही विशेषज्ञता का काम है, एक भी सैकेंड की देरी, जरा सी चूक पूरी मेहनत पर पानी फेर सकती है। इसलिए आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कितना अहम पड़ाव है।

यह देश का पहला पुल जिसे ब्लास्ट लोड के मुताबिक तैयार किया गया : संजीव माही ने बताया कि यह देश का पहला पुल है, जिसे ब्लास्ट लोड के मुताबिक डीआरडीओ की मदद से तैयार किया गया है। पहली बार निर्माण स्थल पर नेशनल एक्रिडेशन बोर्ड फार लेबोरेटरी द्वारा मान्य एक लेबोरेटरी स्थापित की गई, जो इस पुल पर होने वाले वेङ्क्षल्डग के काम की जांच करती है। यह पुल ऊधमपुर से बारामुला तक 272 किलोमीटर लंबे रेलवे परियोजना का एक हिस्सा है।


आर्च पुल की लंबाई 1.315 किलोमीटर है और यह रियासी की तरफ बक्कल और दूसरी तरफ से डुग्गा (जो बनिहाल-कश्मीर की तरफ है) को आपस में जोड़ेगा।
आर्च पुल पर बना डेक 785 मीटर लंबा है।
इस पुल पर हवा की गति 120 किलोमीटर प्रति घंटा है, लेकिन इसे 266 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलने वाली हवा के दवाब को सहने में समर्थ बनाया है।
पुल पर रेल 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गुजरेगी।
पुल में 10,620 टन स्टील से आर्च तैयार हुई है।


ऊधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल परियोजना के अनुमानित निर्माण लागत 28 हजार करोड़ रुपये है।
आर्च में 28600 मीट्रिक टन सेल्फ कंपैक्ट कंक्रीट का इस्तेमाल किया गया है।
पुल का डिजाइन ऐसा है कि भूकंप से भी इसे कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। जिस क्षेत्र में पुल बन रहा है वो सेसमिक जोन चार में आता है, लेकिन इसे सबसे अधिक तीव्रता वाले जोन-5 के भूकंप को बर्दाश्त करने योग्य बनाया गया है।
यह पुल आनलाइन मानिटङ्क्षरग और वार्निंग सिस्टम से लैस है। इसमें रोप-वे लिफ्ट की सुविधा भी होगी और सेंसर लगे होंगे। इससे किसी भी प्रकार की खराबी आने पर तुरंत पता लग जाएगा।


यह है पूरी परियोजना की स्थिति : 272 किलोमीटर लंबी ऊधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेलवे परियोजना का काम तेजी से जारी है। जम्मू से आगे ऊधमपुर और कटड़ा तक रेल पहुंच चुकी है। वहीं, बनिहाल से श्रीनगर और आगे बारामुला तक भी ट्रेन चल रही है। अब 111 किलोमीटर लंबे कटड़ा से बनिहाल के हिस्से का काम चल रहा है। इसी हिस्से पर आर्च पुल बनाया गया है। यह रेल खंड परियोजना का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा है। पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से 97 प्रतिशत ट्रैक सुरंगों में से या पुलों पर से होकर गुजर रहा है। रियासी और रामबन जिले की अत्यधिक ऊबड़-खाबड़ पहाडिय़ों में सुरंग बनाने का काम बेहद कठिन है। इस हिस्से का काम अंतिम चरण में है, इसके पूरा होते ही कन्याकुमारी से कश्मीर रेल से जुड़ जाएगा। इस पूरी परियोजना के दिसंबर 2023 तक पूरा होने की उम्मीद है।

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