सरकारी नौकरी छोड़ शुरू की ऑर्गेनिक खेती, 20 हजार की लागत पर 4 लाख रुपये की हो रही कमाई

दोस्तों ऑर्गेनिक खेती फसल उत्पादन की एक प्राचीन पद्धति है,ऑर्गेनिक खेती को जैविक खेती भी कहते है,जैविक कृषि में फसलों के उत्पादन में गोबर की खाद,कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फ़सलोन के अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों के माध्यम से पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। सबसे खास बात यह है, कि इस प्रकार की खेती में प्रकृति में पाए जानें वाले तत्वों को कीटनाशक के रूप में प्रयोग किया जाता है,जैविक खेती पर्यावरण की शुद्धता बनाये रखनें के साथ ही भूमी के प्राकृतिक स्वरूप को बनाये रखती है।

दोस्तों जैविक खेती फायदे का सौदा है। इसका उदाहरण पेश किया है बांदा के एक किसान ने जिसने सरकारी नौकरी छोड़कर खेती-किसानी अपनाई और अब ऑर्गेनिक फार्मिंग करके दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन गया है। हम बात कर रहे हैं जाहिद अली की। वो परिवहन विभाग में क्लर्क की नौकरी करते थे लेकिन उसे त्यागकर जैविक खेती की ओर रुख किया,अब वो सब्जियों की खेती करके लाखों रुपये कमा रहे हैं। लगभग 20 हजार रुपये प्रति बीघा लागत पर उन्हें सीजन में 4 लाख रुपये तक का रिटर्न मिल रहा है।

ऑर्गेनिक फार्मिंग में लागत बहुत कम आती है। जबकि उत्पादों की कीमत अधिक मिलती है। इसलिए किसान सामान्य खेती के मुकाबले केमिकल फ्री फार्मिंग में ज्यादा कमाई कर लेते हैं। यह आइडिया जाहिद के पास था और उन्होंने पट्टे पर जमीन लेकर खेती शुरू की। यह बात कुछ साल पहले की है। उन्हें पहले सीजन से ही अच्छा खासा मुनाफा मिलना शुरू हुआ और आज वे करीब 25 बीघे जमीन के मालिक हैं।

प्रगतिशील किसान जाहिद अली दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय बांदा अतर्रा स्थित जैविक केंद्र से उन्हें मदद मिलती है। वो मिट्टी टेस्ट करवाते हैं पता करते हैं कि किस मिट्टी में कौन सी फसल अच्छी होगी। कौन से किस्म का बीज अच्छा होगा। इसके बाद कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से काम शुरू करते हैं। जिसका उन्हें अच्छा फायदा मिलता है। वो अपने खेत में इन दिनों खीरा, ककड़ी, लौकी, कद्दू, करेला, भिंडी, तरोई, बैंगन और टमाटर सहित कई जैविक सब्जियां उगा रहे हैं। जाहिद अली ने बताया कि वो अपने कृषि फार्म में गोबर की खाद एवं वर्मी कंपोस्ट डालते हैं। गोमूत्र से कीटनाशक आदि तैयार करते हैं। खेती में रासायनिक खाद के बजाय इसी जैविक खाद ही प्रयोग करते हैं। जिससे फसलों में अलग स्वाद आता है और उसकी मार्केट वैल्यू रासायनिक के मुकाबले ज्यादा हो जाती है। जाहिद ने बताया कि उन्होंने 1999 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। उस वक्त वो दूसरों के खेतों को बटाई पर लेकर काम करते थे।

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