बचपन मे देखा IAS बनने का सपना इसके लिए जूते की दुकान में किया काम , इस सपने के लिए शुभम गुप्ता की संघर्ष की कहानी

दोस्तों आज हम आपको 2018 के टॉपर शुभम गुप्ता की कहानी बता रहे हैं। जूते की दुकान से आईएएस बनने तक का सफर बेहद कठिनाई भरा रहा है। पिता के कह देने भर से बेटे ने वो मुकाम हासिल कर दिखाया, जिसके लिए लोग न जानें कितने सालों से मेहनत कर रहे हैं पर अभी तक मंजिल नहीं पा सकें।

शुभम ने एक इंटरव्यू में बताया कि वे जयपुर के एक मिडिल क्लास परिवार से हैं। बचपन से ही वे पिता के साथ उनकी दुकान पर बैठते थे। कारोबार के कारण उनकी और उनके पिता की मुलाकात बड़े-बड़े अफसरों से होती थी। पिता ने कहा कि कलेक्टर बन जाओ और बेटे ने अपने पिता की बात का मान रखा। बचपन में शुभम का परिवार जयपुर छोड़कर महाराष्ट्र शिफ्ट हो गया। उन्होंने बताया कि उस वक्त आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उन्हें अपना शहर छोड़ना पड़ा। वहां उनके पिता को जूते की दुकान खोलनी पड़ी।

उनके गांव में हिंदी और अंग्रेजी मीडियम का एक भी स्कूल नहीं था। 10वीं कक्षा की पढ़ाई मराठी भाषा में करना बेहद मुश्किल था। चूंकि शुभम को मराठी समझ नहीं आती थी इसलिए उनके पिता ने उनका और उनकी बहन का दाखिला गांव से दूर एक स्कूल में करवाया। स्कूल घर से 80 किमी. की दूरी पर था इसलिए वे अपनी बहन के साथ सुबह 6 बजे की ट्रेन पकड़ते थे और स्कूल से अपने घर शाम 3 बजे आते थे। पिता को लगा की एक दुकान से काम नहीं चलेगा इसलिए उनके पिता ने बेटे के स्कूल के पास भी अपनी जूते की दुकान खोली। उस पर शुभम ने बैठना शुरू कर दिया। वे दुकान पर काम करने के साथ -साथ पढ़ाई भी किया करता था।

काम के साथ पढ़ाई करने के बावजूद भी शुभम ने सीजीपीए हासिल किया। अच्छे नंबर के कारण लोगों ने कहा कि तुम्हें विज्ञान विषय के साथ आगे बढ़ना चाहिए पर शुभम को वाणिज्य ज्यादा पसंद था इसलिए वे वाणिज्य के साथ गए। बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे दिल्ली आ गए। दिल्ली से शुभम ने दिल्ली विश्वविद्यालय में बीकॉम में दाखिला लिया और वहीं से ही एमकॉम की भी पढ़ाई पूरी की।

2015 में वे यूपीएससी की तैयारी में लग गए। पहले प्रीलिम्स में वे सफल नहीं हो पाए। उन्होंने इस पर बोला कि मैं अपनी असफलता का कारण अपने द्वारा की गई लापरवाही और ठीक प्रकार से न बनाया गया टाइमटेबल को मानता हूं। अपनी तैयारी में उन्होंने सरकार की पॉलिसी के हर पहलू को समझने के लिए हर छोटे-छोटे बिंदु को समझा.इस स्ट्रेटजी के दम उन्होंने 2016 में ऑल इंडिया 366 रैंक हासिल की। इसके बाद इनकी सरकारी नौकरी लग गई। जॉब के साथ भी वे यूपीएससी की तैयारी करते रहे। अंत में उन्होंने यूपीएससी 2018 में छठी रैंक हासिल की।

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