दोस्तों हरियाणा राज्य के महेंद्रगढ़ जिले के कनीना में पारंपरिक खेती मे ज्यादा फायदा नहीं होने कारण बहुत से किसान अब आधुनिक तरीके से खेती कर लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं। ऐसे किसानों में ही शामिल हैं गांव इसराना निवासी किसान अजय सिंह जो लगभग 03 साल पहले एप्पल बेर की खेती शुरू की और अब डेढ़ एकड़ में 3 लाख 50 हजार रुपये सालाना कमा रहे हैं।

तीन साल पहले पारंपरिक खेती छोड़कर थाई एप्पल बेर की बागवानी शुरू की, अब हर साल 40 लाख रु. कमा रहे,अजय सिंह स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद बहरोड में स्कूटर, बाइक की मरम्मत का काम शुरू किया लेकिन वह अधिक नहीं चल पाया। राजस्थान में हो रही है सेब जैसे बेर की खेती, किसानों को होगा तीन गुना मुनाफा.इसके बाद अजय ने परंपरागत खेती करनी शुरू कर दी लेकिन उसमें अच्छा मुनाफा नहीं होने पर एकीकृत बागवानी विकास केंद्र सुंदरह में संपर्क किया। वहां पर उन्होंने आधुनिक तकनीक से जैविक खेती करने का 02-03 दिन तक प्रशिक्षण लिया और शुरू कर कर दी खेती।

अजय सिंह ने जैविक विधि से डेढ़ एकड़ जमीन में जून 2019 में ग्रीन एप्पल बेर व कश्मीरी एप्पल बेर के 300 पौधे लगाए।इसमें बहुत ज्यादा लागत भी नहीं आई। उन्होंने 40 से 50 हजार रुपये खर्च कर 300 पौधे लगाए जो कि पहली फसल से ही उनके पैसे वापस देने लगे.एक बार इन पौधों पर रुपये खर्च करने के बाद किसी भी तरह का खर्च नहीं होता। 18 से 20 साल तक लगातार आप इन पौधों से फल ले सकते हैं और काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

अजय ने बताया कि पहले वर्ष में उन्हें एक पौधे से 2 से 5 किलो बेर का फल प्राप्त हुआ। उसके बाद अगले वर्ष 15 से 20 किलो तो अब तीसरे वर्ष यह उत्पादन बढ़कर 40 से 50 किलो तक पहुंच गया है। उन्होंने बताया कि एप्पल बेर कम से कम 20 से 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। अजय ने बताया कि वह पास लगते कस्बे कनीना में रेहड़ी टेंपो चालकों को यह बेर 25 से 30 किलो के हिसाब से बेच देते हैं। लगभग 3 लाख 50 हजार रुपये की एक वर्ष में आमदनी हो जाती है।

जैसा की बागवानी फसलों की खेती के लिए वर्मी कंपोस्ट की अहम भूमिका होती है. उसी तरह थाई एप्पल बेर के लिए कार्बनिक पदार्थों वाली कंपोस्ट खाद सबसे अच्छी रहती है. किसान चाहें तो क्षारीय और लवणीय मिट्टी में भी एप्पल बेर के पेड़ लगाकर ठीक-ठाक उत्पादन ले सकते हैं.थाई एप्पल बेर की प्रजाति के पेड़ों में सूखा की मार झेलने की शक्ति होती है. यही कारण है.

दूसरी बागवानी फसलों की तरह ही थाई एप्पल बेर के लिए भी खेत की जुताई करके प्रति पौधा के हिसाब से 5 मीटर दूरी पर 2-2 फीट लंबाई-चौड़ाई वाले वर्गाकार गड्ढों की खुदाई की जाती है. इन गड्ढों में 25 दिन तक सौराीकरण होता है, जिसके बाद 20 से 25 किलो अच्छी सड़ी हुई या कंपोस्ट खाद, नीम की पत्तियां, नीम की खली और कुछ पोषक तत्व मिलाकर गड्ढों में भर दिये जाते हैं. किसान चाहें तो बेहतर उत्पादन के लिये खेत से नमूना लेकर मिट्टी की जांच भी करवा सकते हैं.