दोस्तों उत्तरप्रदेश के सहारनपुर के रहने वाले राजपाल सिंह शुरुआत से ही खेती से जुड़े रहे। वे अपने पिता के साथ खेत पर जाते थे और उनकी मदद करते थे। ग्रेजुएशन के बाद उनके दोस्त सरकारी नौकरी की तैयारी करने लगे, कुछ बाहर कमाने निकल गए। लेकिन, राजपाल ने कहीं और जाने के बजाय गांव में रहकर खेती करने का ही फैसला किया। अभी वे आम, अमरूद और लीची की खेती करते हैं। इससे सालाना 25 लाख रु के करीब उनकी कमाई हो रही है।

राजपाल कहते हैं, ‘पहले हम लोग गेहूं और गन्ने की खेती करते थे। इससे खाने-पीने का खर्च तो निकल जाता था, लेकिन आमदनी या बिजनेस जैसा कुछ नहीं था। ऊपर से देर से पैसे मिलते थे। जो लोग गन्ना खरीदते थे, वे नकद भुगतान नहीं करते थे। इसके बाद कुछ सालों तक हमने मधुमक्खी पालन भी किया। हालांकि, यह भी बिजनेस बहुत जमा नहीं।

इसके बाद मेरे मन में फसल बदलने का विचार आया। लेकिन उससे पहले जरूरी था मार्केट को समझना। क्योंकि फसल के उत्पादन के बाद उसकी खपत जरूरी होती है। इसलिए मैंने मार्केट रिसर्च करना शुरू किया। अलग अलग मंडियों में गया और वहां डिमांड और सप्लाई चेन को समझा। फिर 2006 में लीची और आड़ू की बागवानी शुरू की। इसमें अच्छी कमाई हुई। कुछ साल बाद आड़ू की जगह अमरूद के प्लांट्स लगाए। इससे और ज्यादा मुनाफा हुआ।

वो बताते हैं कि लोकल मंडी में लीची 70 से 130 रुपए और अमरूद 60-65 रुपए प्रति किलो बिकता है। वहीं लीची को बेंगलुरू और भुज भेजने के बाद 400-450 रुपए का भाव मिलता है। इस तरह लीची से हर साल प्रति हेक्टेयर 7.5 लाख से 8 लाख रुपए और अमरूद से 6 लाख से 7 लाख रुपए तक की कमाई होती है।

अभी देश के लगभग हर बड़े शहर में राजपाल के बाग से लीची और अमरूद की सप्लाई होती है। उनकी टीम में 6 लोग काम करते हैं। 8 एकड़ जमीन पर आम, अमरूद और लीची की वो खेती करते हैं। सबसे ज्यादा कमाई लीची से होती है। उनके बाग में 600 से ज्यादा अमरूद, 400 से ज्यादा लीची और 100 के करीब आम के प्लांट हैं। इसमें लगभग सभी प्रमुख वैरायटीज शामिल हैं।

राजपाल का बेटा एक कंपनी में जॉब कर रहा है। वो कहते हैं कि मैंने नौकरी के लिए नहीं बल्कि कॉरपोरेट कल्चर को समझने के लिए भेजा है। जैसे ही उसे थोड़ी बहुत समझ हो जाएगी उसे हम यहीं बुला लेंगे। क्योंकि किसान की दिक्कत यही है कि वह प्रोडक्ट तैयार करना तो जानता है लेकिन उसे बेचना नहीं जानता। जिस दिन वो बेचना सीख गया, उसके सामने कोई और बिजनेस नहीं टिकेगा