हिमाचल के किसान ने किया कमाल, रासायनिक खेती में बढ़ा खर्च तो अपनाया ये तरीका, अब लाखों में हो रही कमाई

रासायनिक खेती से किसानों को मुनाफा कम और खर्चा ज्यादा होता है. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के किसान सुखजिंदर सिंह ने रासायनिक खेती से तौबा कर ली है. अब वो प्राकृतिक खेती (Prakritik Kheti) कर रहे हैं. इस खेती विधि को अपनाने से उनकी खेती की लागत में भारी कमी आई है और मुनाफा कहीं ज्यादा बढ़ गया है. उनका कहना है कि असफलताओं से पार पारकर जो सफलता मिलती है वह स्थायी होती है. आज यह किसान अपने जिले के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरा है.

सुखजिंदर सिंह ने बताया कि उन्होंने अपने पिता प्रीतम सिंह के साथ पालमपुर में प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंल ली. पद्मश्री सुभाष पालेकर के 6 दिवसीय ट्रेनिंग शिविर ने उनका खेती के प्रति नजरिया बदल दिया. घर लौटकर पिता-पुत्र की इस जोड़ी ने प्राकृतिक खेती को 1 बीघा जमीन पर अपनाया. शुरुआती दो वर्षों में इन्हें नुकसान हुआ, मगर पालेकर जी के शिविर से वह इतने प्रभावित थे कि प्राकृतिक खेती करते रहे.

सब्जियों की खेती के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र में लोग घीया, कद्दू, खीरा जैसी बेलदार फसलें ज्यादा लेते हैं. सुखजिंदर ने बताया कि उन्हें सभी प्रकार की सब्जियों के साथ सरसों, लहसुन, गेहूं और मक्का में भी इस विधि से बाकी किसानों के मुकाबले बहुत अच्छे नतीजे मिले. पिता-पुत्र की यह जोड़ी अब बाकी किसानों को भी इस विधि की तरफ मोड़ रही है. इसके लिए वह मार्गदर्शन करने के साथ किसानों को सब्जियों की पनीरी भी तैयार कर रहे हैं.

सुखजिंदर के पिता प्रीतम सिंह का कहना है कि 72 साल की उम्र में पहली बार कोई ऐसी खेती विधि देखी है, जो सच में किसान हितैषी है. हर किसान-बागवान को यह विधि अपनानी चाहिए. हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक, सुखजिंदर पहले सड़क किनार शामियाना लगाकर सब्जियां बेचता था, लेकिन ग्राहक कम आते थे.

जब से कृषि विभाग ने उनको कैनोपी प्रदान की, ग्राहकों की संख्या 50 फीसदी ज्यादा बढ़ गई.सुखजिंदर अन्य किसानों को प्राकृतिक खेती सीखा रहे हैं. पिता-पुत्र की जोड़ी के अलावा सुखजिंदर की पत्नी भी प्राकृति खेती के प्रसार में अहम भूमिका निभा रही है. वह सरस्वती महिला समूह से जुड़ी है और इस समूह की सदस्यों को प्राकृतिक खेती की जानकारी दे रही हैं. समूह की कुछ महिलाएं अपने-अपने खेत व क्यारी में इस विधि को अपनाना शुरू कर चुकी हैं

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