दोस्तों सर्दियों की खास फसल है हरी मटर जिसे सब्ज़ी से लेकर बीज तैयार करने तक के लिए उगाया जाता है। लेकिन खेती की बढ़ती लागत से किसानों का मुनाफा लगातार कम होता जा रहा है, ऐसे में कमाई के अन्य तरीके अपनाने की ज़रूरत है। हरियाणा के किसानों ने अतिरिक्त आमदनी के लिए मटर की मिश्रित खेती का तरीका अपनाया है। वो मटर के साथ है सैलरी जिसे अजमोद भी कहा जाता है, उसकी खेती कर रहे हैं। सैलरी औषधीय गुणों से भरपूर होती है और सलाद से लेकर सब्ज़ी, सूप आदि बनाने तक में इसका इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसकी बाज़ार में अच्छी मांग है।

सैलरी का उपयोग सलाद के रूप में तो किया ही जाता है, साथ ही कई रोगों के उपचार में भी यह मददगार है, क्योंकि इसके तने से लेकर पत्ते और बीज तक में औषधीय गुण होता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होता है, साथ ही मिनरल्स, विटामिन सी, बी, विटामिन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और आयरन होता है। इसके ढेरों लाभ के कारण ही बाज़ार में इसकी अच्छी मांग है। हरियाणा के किसानों ने इसी का फायदा उठाने के लिए खेती की नई तकनीक अपनाई जिसमें हरी मटर के साथ ही सैलरी की मिश्रित खेती करने लगें, जिससे उन्हें पहले के मुकाबले अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है।

इसके लिए खेती की अच्छी जुताई करके अक्टूबर महीने में सैलरी के बीज छिटकवां विधि से बोने चाहिए। प्रति एकड़ 4 किलो बीज की ज़रूरत होती है। हल्की बलुई दोमट मिट्टी में सैलरी की फसल अच्छी होती है। इसके बीजों को पानी में 24 घंटे भिगोकर रखा जाता है फिर खेत में बुवाई की जाती है। इसके अंकुरण में 4-6 हफ्ते का समय लगता है।

मटर के बीजों को राइजोबियम से उपचारित करके बुवाई करें। एक एकड़ में बटर के करीब 35-40 किलो बीजों की बुवाई बिजाई बैंड प्लांटर से करें। मटर की फसल में 3-4 सिंचाई की जाती है। साथ ही अच्छी फसल के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश ज़रूर डालें।

प्रति एकड़ मटर की फसल 50-55 क्विंटल और सैलरी की फसल 7-8 क्विंटल तक हो जाती है। सैलरी 6-7 हज़ार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक जाती है। हरी मटर की तुड़ाई दिसबंर से फरवरी के बीच की जाती है, जबकि फरवरी में मटर तोड़ने के बाद सैलरी में 15-20 दिनों के बाद दो गुड़ाई करें। इसके बाद सैलरी में प्रति एकड़ 23 किलो नाइट्रोजन डालें। अच्छी फसल के लिए सैलरी में फूल और दाने निकलते समय सिंचाई ज़रूर की जानी चाहिए। अप्रैल के अंत में सैलरी की फसल तैयार हो जाती है। इसकी कटाई हाथों से ही की जाती है।

अजमोद गांव में भले ही खाने में आज भी बहुत इस्तेमाल नहीं किया जाता है, लेकिन शहरों में इसकी बहुत मांग है। खासतौर पर बड़े-बड़े होटलों में। इसके अलावा शादियों में सूप, सलाद, सब्जियों की खुशबू बढ़ाने और डेकोरेशन के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है यह महंगी बिकती है। राजस्थान और हरियाणा के कई इलाकों के किसान इसकी खेती से लाभ कमा रहे हैं।